यातायात के नियमों के प्रति जागरूकता फैलाने और लोगों को सड़क दुर्घटनाओं से बचाने के लिए प्रतिवर्ष राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जाता है। इस बार 30 वां राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह 4 से 10 फरवरी तक मनाया जाएगा।
तेज रफ्तार, शराब पीकर गाड़ी चलाना, हेलमेट और सीट बेल्ट की अनदेखी करना दुर्घटनाओं के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। वहीं, सड़क दुर्घटनाओं के लिए प्रशासन भी उतना ही जिम्मेदार है जितने कि वाहन चालक। ठेकेदारों द्वारा प्रयोग किया गया घटिया क्वॉलिटी का सामान, डिजाइन के कारण बनी खराब सड़कें और इंजीनियरिंग क्वॉलिटी भी इसका प्रमुख कारण हैं, जिसकी वजह से देश में हर एक मिनट में 22 सड़क दुर्घटनाएं होती हैं।
इन सबके अलावा सड़कों पर बढ़ते वाहन भी दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं। चिंताजनक यह है कि वाहनों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती ही चली जा रही है। दूसरी ओर लोगों की लापरवाही के कारण पैदल चलने वालों को भी सड़क दुर्घटनाओं का शिकार होना पड़ता है। आज के युवा इस तरह से वाहन चलाते हैं कि न तो वे अपनी जिंदगी की परवाह करते हैं और न ही दूसरों की जिंदगी की।
एक सर्वेक्षण के अनुसार, देश में 78.7 प्रतिशत दुर्घटनाएं चालकों की गलती से होती हैं। वर्ष 2011 में 4.97 लाख सड़क दुर्घटनाओं में 1.42 लाख लोगों को जान गवानी पड़ी थी, जबकि वर्ष 2012 में यह आंकड़ा थोड़ा कम हुआ, जिसमें 4.90 लाख सड़क दुर्घटनाओं में 1.38 लाख लोगों की जानें गईं। जब वाहन चालक यातायात के नियमों का पालन नहीं करेंगे, नशे में वाहन चलाएंगे, ड्राइविंग करते हुए मोबाइल पर बात करेंगे, वाहनों में जरूरत से अधिक भीड़-भाड़ होगी, निर्धारित गति से तेज गाड़ी चलाई जाएगी, तो सड़कें जानलेवा बन ही जाएंगी।
आपको यकीन नहीं होगा, लेकिन यह सच है कि पूरे विश्व में भारत में सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। हालांकि ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ ने साल 2011-2020 को सड़क सुरक्षा के लिए कार्रवाई के दशक के रूप में अपनाया है और सड़क दुर्घटनाओं से वैश्विक स्तर पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों की पहचान करने के साथ-साथ इस अवधि के दौरान सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में 50 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
जबकि ‘अंतर्राष्ट्रीय सड़क संघ’ के अनुसार विश्व में सड़क दुर्घटनाओं में प्रत्येक वर्ष 1.2 मिलियन व्यक्ति मारे जाते हैं और 50 मिलियन प्रभावित होते हैं। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि यदि इस दिशा में ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है, तो वर्ष 2030 तक विश्व में सड़क दुर्घटनाएं लोगों की मौत का पांचवां बड़ा कारण बन जाएगी।
इसके मद्देनजर सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने देश में सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के लिए राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा नीति को मंजूरी देने के साथ ही विभिन्न उपाय किए। इसमें यातायात नियमों को लेकर जागरूकता बढ़ाना, सड़क सुरक्षा सूचना पर आंकड़ें एकत्रित करना, सड़क सुरक्षा की बुनियादी संरचना के अंतर्गत कुशल परिवहन अनुप्रयोग को प्रोत्साहित करना तथा सुरक्षा कानूनों को लागू करना शामिल है।
वाहन चलाते समय सुरक्षा उपायों, जैसे- हेलमेट, सीट बैल्ट, पॉवर स्टेयरिंग और सड़क सुरक्षा जागरूकता से संबंधित अभियान पर जोर दिया, लेकिन इसमें मामूली अंतर ही आ पाया। ऐसे में आज यह बड़ी समस्या बनती जा रही है, लोगों में धैर्य की कमी और जल्दी के चलते वह अपनी मौत का जोखिम लेने से भी नहीं डर रहे हैं।
कई बार तो लोग इतने संवदेनहीन हो जाते हैं कि वह सड़क पर किसी को मारने के बाद गाड़ी की स्पीड बढ़ाकर वहां से रफूचक्कर होने में ही अपनी भलाई समझते हैं। इसके चलते सड़क पर पड़ा वह व्यक्ति तड़प तड़पकर अपनी जान दे देता है। कुछ दुर्घटनाओं में तो सड़क पर मौजूद भीड़ भी घायल व्यक्ति को अस्पताल तक नहीं पहुंचाती है, क्योंकि वह किसी भी तरह के कानूनी पचड़े में नहीं पड़ना चाहती है।
खैर, इन सड़क हादसों से न केवल इंसान अपितु जानवरों को भी बहुत नुकसान होता है, क्योंकि वह इंसानों की तरह न तो यातायात के नियम जानते हैं और न ही उन्हें कई बार वाहनों की तेज गति का पता चल पाता है, जिसके चलते कई कुत्ते, बिल्लियां, बंदर और गायें इनका शिकार हो जाती हैं। ऐसे में भारत सरकार को सड़क दुर्घटना से पीड़ित लोगों के इलाज हेतु कई प्रकार की योजनाएं चलानी होंगी और राज्य सरकारों को लोगों को यातायात के नियम के प्रति जागरूकता फैलाने का काम करना होगा।
वहीं, सड़क पर वाहन चलाते हुए लोगों को भी पैदल चलने वालों और जानवरों का भी विशेष ध्यान रखना होगा। इससे न केवल हम खुद को, बल्कि दूसरों को भी दुर्घटनाओं से बचा सकते हैं।
Updated On: May 29, 2020 4:46 pm