पितृ पक्ष हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन मास की अमावस्या तक चलता है. इस साल पितृ पक्ष 29 सितंबर, शुक्रवार से शुरू होगा और 14 अक्टूबर, शनिवार को समाप्त होगा. पितृ पक्ष में 16 दिन होते हैं, और प्रत्येक दिन को एक विशेष श्राद्ध दिन कहा जाता है.
आपको बता दें, पितृ पक्ष में अपने मृत पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दौरान पितृ अपने जीवित परिजनों से मिलने आते हैं. श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनके आशीर्वाद से जीवित परिजनों को सुख और समृद्धि प्राप्त होती है.
पितृ पक्ष में क्या करें और क्या न करें
पितृ पक्ष हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण अवधि है, जब लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और अन्य कर्मकांड करते हैं. इस अवधि के दौरान, कुछ चीजें हैं जो करना चाहिए और कुछ चीजें हैं जो नहीं करनी चाहिए.
पितृ पक्ष में क्या करना चाहिए
- अपने पूर्वजों को याद करें और उनका सम्मान करें
- उनके लिए श्राद्ध, तर्पण, और पिंडदान करें
- उनके लिए भोजन और जल अर्पित करें
- दान और परोपकार करें
- भगवान विष्णु और शिव की पूजा करें
पितृ पक्ष में क्या न करें
- मांस, मदिरा, और अन्य तामसिक पदार्थों का सेवन न करें
- लोहे के बर्तन में खाना न पकाएं
- अपने घर के बुजुर्गों और पितरों का अपमान न करें
- नया कपड़ा न खरीदें
- नए घर में प्रवेश न करें
- नई नौकरी न शुरू करें
इस दौरान, हिंदू अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए कई तरह के अनुष्ठान करते हैं. इनमें श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान, और दान शामिल हैं. पितृ पक्ष की सबसे महत्वपूर्ण तिथि सर्व पितृ अमावस्या है, जो इस साल 14 अक्टूबर को है. इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष श्राद्ध और तर्पण किया जाता है.
- श्राद्ध एक धार्मिक अनुष्ठान है जिसमें मृतकों की आत्मा के लिए भोजन और पानी अर्पित किया जाता है.
- तर्पण एक अनुष्ठान है जिसमें मृतकों की आत्मा को जल पिलाया जाता है.
- पिंडदान एक अनुष्ठान है जिसमें मृतकों की आत्मा के लिए पिंड या आटे के गोले दान किए जाते हैं.
- दान एक अनुष्ठान है जिसमें दान किया जाता है, जो मृतकों की आत्मा के लिए पुण्य अर्जित करने में मदद करता है.
यह एक ऐसा अवसर है जब हम अपने पूर्वजों के साथ संबंध बनाए रख सकते हैं और उनकी आत्मा को शांति प्रदान कर सकते हैं. इन नियमों का पालन करके, हम अपने पूर्वजों का सम्मान कर सकते हैं और उन्हें खुश कर सकते हैं.
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