इरफ़ान खान इन दिनों एक गंभीर बीमारी का इलाज लंदन में स्थित एक हॉस्पिटल में करवा रहे है। वो न्यूरोएंडोक्राइन नाम की एक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित हैं. लंदन में मौजूद इरफान ने टाइम्स ऑफ इंडिया को एक इमोशनल लैटर लिखा है. जिसमें उन्होंने अपनी बीमारी और इससे जूझते हुए तनाव और सारी परेशानी को बताया है.
ये रहा इरफान का लैटर:
इरफान ने अपने इस लेटर की शुरुआत में लिखा, ‘कुछ महीने पहले अचानक मुझे पता चला कि मैं न्यूरोएन्डोक्राइन कैंसर से जूझ रहा हूं, मेरी शब्दावली के लिए यह बेहद नया शब्द था, इसके बारे में जानकारी लेने पर पता चला कि यह एक दुर्लभ बीमारी है और इसपर अधिक शोध नहीं हुए हैं. अभी तक मैं एक बेहद अलग खेल का हिस्सा था. मैं एक तेज भागती ट्रेन पर सवार था, मेरे सपने थे, योजनाएं थीं, अकांक्षाएं थीं और मैं पूरी तरह इस सब में बिजी था. तभी ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे कंथे पर हाथ रखते हुए मुझे रोका. वह टीसी था: ‘आपका स्टेशन आने वाला है. कृपया नीचे उतर जाएं.’ मैं परेशान हो गया, ‘नहीं-नहीं मेरा स्टेशन अभी नहीं आया है.’ तो उसने कहा, ‘नहीं, आपका सफर यहीं तक था. कभी-कभी यह सफर ऐसे ही खत्म होता है.’
इरफान ने इस पत्र में आगे लिखा, ‘इस सारे हंगामे, आश्चर्य, डर और घबराहट के बीच, एक बार अस्पताल में मैंने अपने बेटे से कहा, ‘मैं इस वक्त अपने आप से बस यही उम्मीद करता था कि इस हालत में मैं इस संकट से न गुजरूं. मुझे किसी भी तरह अपने पैरों पर खड़े होना है. मैं डर और घरबाहट को खुद पर हावी नहीं होने दे सकता. यही मेरी मंशा थी… और तभी मुझे बेइंतहां दर्द हुआ.’
उन्होंने इस पत्र में लिखा, ‘जब मैं दर्द में, थका हुआ अस्पताल में घुस रहा था, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरा अस्पताल लॉर्ड्स स्टेडियम के ठीक सामने है. यह मेरे बचपन के सपनों के ‘मक्का’ जैसा था. अपने दर्द के बीच, मैंने मुस्कुराते हुए विवियन रिचर्ड्स का पोस्टर देखा. इस हॉस्पिटल में मेरे वॉर्ड के ठीक ऊपर कोमा वॉर्ड है. मैं अपने अस्पताल के कमरे की बालकॉनी में खड़ा था, और इसने मुझे हिला कर रख दिया. जिंदगी और मौत के खेल के बीच मात्र एक सड़क है. एक तरफ अस्पताल, एक तरफ स्टेडियम.’ उन्होंने लिखा, ‘मेरे अस्पताल की इस लोकेशन ने मुझे हिला कर रख दिया. दुनिया में बस एक ही चीज निश्चित है, अनिश्चितता. मैं सिर्फ अपनी ताकत को महसूस कर सकता था और अपना खेल अच्छी तरह से खेलने की कोशिश कर सकता था.’
इरफान ने आगे लिखा कि इस सब ने मुझे अहसास कराया कि मुझे परिणाम के बारे में सोचे बिना ही खुद को समर्पित करना चाहिए और विश्वास करना चाहिए, यह सोचा बिना कि मैं कहां जा रहा हूं, आज से 8 महीने, या आज से चार महीने, या दो साल. अब चिंताओं ने बैक सीट ले ली है और अब धुंधली से होने लगी हैं.. पहली बार मैंने जीवन में महसूस किया है कि ‘स्वतंत्रता’ के असली मायने क्या हैं.’