Holi 2022: आज है रंगो का पर्व होली, जानिए इसका इतिहास और महत्व

Holi Kab Hai, Holi 2022 Date: रंग और गुलाल का त्योहार होली इस साल 18 मार्च 2022 दिन शुक्रवार को मनाया जा रहा है. बसंत ऋतू में मनाया जाने वाला ये हिन्दुओं का मुख्य त्योहार है. होली भाई-चारे का पर्व है.

Holi 2022: आज है रंगो का पर्व होली, जानिए इसका इतिहास और महत्व (Image Source: Pixabay)
Holi 2022: आज है रंगो का पर्व होली, जानिए इसका इतिहास और महत्व (Image Source: Pixabay)
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Holi 2022 Date: रंग और गुलाल का त्योहार होली इस साल 18 मार्च 2022 दिन शुक्रवार को मनाया जा रहा है. बसंत ऋतू में मनाया जाने वाला ये हिन्दुओं का मुख्य त्योहार है. होली भाई-चारे का पर्व है. इस दिन लोग अपने गीले-शिकवे को भुलाकर एक दूसरे को गले लगाते है और रंग खेलकर होली मनाते है. यह बुराई पर अच्छाई का त्योहार है.

होली (Holi 2022) के एक दिन पहले होलिका दहन मनाया जाता है. होलिका दहन (Holika Dahan 2022) को छोटी होली भी कहते हैं. इस बार होलिका दहन 17 मार्च दिन गुरुवार को मनाया गया और 18 मार्च को होली खेली जाएगी.

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हिन्दू पंचांग के मुताबिक, होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. आइए जानते हैं कि साल 2021 में होली कब मनाई (Holi 2022 Date) जाएगी. आइए देखते हैं होलिका दहन की शुभ मुहूर्त और तारीख..

होली कब है? (Holi 2022 Date and Shubh Muhurat)

पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 17 मार्च को दोपहर 01 बजकर 29 मिनट से हो रहा है. यह तिथि अगले दिन 18 मार्च को दोपहर 12 बजकर 47 मिनट तक मान्य है.

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होली का इतिहास और महत्व

होलिका दहन मनाने के पीछे एक बहुत प्रसिद्ध कहानी है. प्राचीन कल में एक राजा था जिसका नाम हिरण्यकश्यप था. उसकी बहन का नाम होलिका और उसके पुत्र का नाम प्रह्लाद था. हिरण्यकश्यप अपने प्रजा पर बहुत जुल्म और अत्याचार करता था और खुद को भगवान कहने के लिए उनपर दवाब बनाता रहता था. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद सिर्फ भगवान विष्णु की पूजा और भक्ति करता था. जिसको देख हिरण्यकश्यप उसपर क्रोधित रहने लगा. इसलिए अपने पुत्र प्रह्लाद को सबक सिखाने के लिए उसने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी. इसके बाद हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने प्रहलाद को मारने के लिए एक योजना बनाई.

होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था. इसके बाद होलिका ने प्रह्लाद को अपने गोद में लेकर आग में बैठ गई. लेकिन हुआ इसका उल्टा. जैसे ही होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठी वह जल गई और प्रह्लाद बच गए. प्रह्लाद इस दौरान अपने आराध्य देव विष्णु भगवान का नाम जपते रहे और आग से बहार आ गए. तब से होलिका दहन की परंपरा शुरू हो गई.

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Updated On: February 25, 2023 10:51 pm

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