Chhath Puja 2021 Date: कब है छठ पूजा, जानिए नहाय-खाय, खरना और पूजा का शुभ मुहूर्त

Chhath Puja 2020 Date: छठ पूजा हिंदू धर्म में मनाये जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है. इस साल छठ पूजा 20 नवंबर 2020 को पुरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जाएगी.
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Chhath Puja 2021 Date: छठ पूजा हिंदू धर्म में मनाये जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है. इस साल छठ पूजा 8 नवंबर 2021 को कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष की षष्ठी यानी छठी तिथि से आरंभ होगा. ये पर्व चार दिनों तक मनाया जायगा.  बिहार में इस पर्व को लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है. छठ पूजा में लोग मुख्य रूप से भगवान सूर्यदेव की उपासना करते है.

ये पर्व बिहार के साथ ही भारत के अन्य राज्यों जैसे, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, राजस्थान में भी धूमधाम से मनाया जाता है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि, जो भक्त छठ पर्व में सूर्योपासना करते है उससे छठ माई प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति व धन धान्य से संपन्न करती हैं.

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छठ पूजा कब है (Chhath Puja 2021)

हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह की षष्ठी से छठ पर्व शुरू हो जाता है. चार दिन चलने वाला ये पर्व इस साल 8 नवंबर यानि आज से नहाय-खाय से पर्व पर पूजा पाठ शुरू होगा. अगले दिन खरना फिर सूर्य को अर्घ देने का दिन और फिर आखिरी दिन सुबह सुबह उगते सूरज को अर्घ्य देकर पर्व का समापन होगा.

जानें कब मनाया जाता है छठ पूजा का पर्व

छठ पूजा का ये पवन पर्व साल में दो बार मनाया जाता है. चैत्र शुक्ल षष्ठी व कार्तिक शुक्ल षष्ठी इन दो तिथियों को यह पर्व मनाया जाता है. हालांकि कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाये जाने वाला छठ पूजा को ही मुख्य माना जाता है. चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है.

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छठ पूजा 2021 (Chhath Puja 2021 Date)

  • 08 नवंबर (सोमवार) – नहाय खाय
  • 09 नवंबर (मंगलवार)- खरना
  • 10 नवंबर (बुधवार)- छठ पूजा (डूबते सूर्य को अर्घ्य देना)
  • 11 नवंबर (गुरुवार)- पारण (सुबह के समय उगते सूर्य को अर्घ्य देना)

छठ पर्व के चार दिन

पहला दिन नहाय खाय

छठ का त्यौहार भले ही कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है लेकिन इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ होती है. मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन लेते हैं.

पूजा का दूसरा दिन खरना

कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है व शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं. इसे खरना कहा जाता है.  इस दिन अन्न व जल ग्रहण किये बिना उपवास किया जाता है. शाम को चाव व गुड़ से खीर बनाकर खाया जाता है. चावल का पिठ्ठा व घी लगी रोटी भी खाई प्रसाद के रूप में वितरीत की जाती है.

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छठ का तीसरा दिन

षष्ठी के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है. इसमें ठेकुआ विशेष होता है. कुछ स्थानों पर इसे टिकरी भी कहा जाता है. चावल के लड्डू भी बनाये जाते हैं. प्रसाद व फल लेकर बांस की टोकरी में सजाये जाते हैं. टोकरी की पूजा कर सभी व्रती सूर्य को अर्घ्य देने के लिये तालाब, नदी या घाट आदि पर जाते हैं. स्नान कर डूबते सूर्य की आराधना की जाती है.

छठ का अंतिम दिन

अगले दिन यानि सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है. विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटा कर छठ पूजा संपन्न की जाती है.

छठ पूजा की व्रत कथा

एक राजा था जिसका नाम स्वायम्भुव मनु था। उनका एक पुत्र प्रियवंद था। प्रियवंद को कोई संतान नहीं हुई और इसी कारण वो दुखी रहा करते थे। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी को प्रसाद दिया, जिसके प्रभाव से रानी का गर्भ तो ठहर गया, किंतु मरा हुआ पुत्र उत्पन्न हुआ।

राजा प्रियवंद उस मरे हुए पुत्र को लेकर श्मशान गए। पुत्र वियोग में प्रियवंद ने भी प्राण त्यागने का प्रयास किया। ठीक उसी समय मणि के समान विमान पर षष्ठी देवी वहां आ पहुंची। राजा ने उन्हें देखकर अपने मृत पुत्र को जमीन में रख दिया और माता से हाथ जोड़कर पूछा कि हे सुव्रते! आप कौन हैं?

तब देवी ने कहा कि मैं षष्ठी माता हूं। साथ ही इतना कहते ही देवी षष्ठी ने उस बालक को उठा लिया और खेल-खेल में उस बालक को जीवित कर दिया। जिसके बाद माता ने कहा कि ‘तुम मेरी पूजा करो। मैं प्रसन्न होकर तुम्हारे पुत्र की आयु लंबी करूंगी और साथ ही वो यश को प्राप्त करेगा।’ जिसके बाद राजा ने घर जाकर बड़े उत्साह से नियमानुसार षष्ठी देवी की पूजा संपन्न की। जिस दिन यह घटना हुई और राजा ने जो पूजा की उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि थी। जिसके कारण तब से षष्ठी देवी यानी की छठ देवी का व्रत का प्रारम्भ हुआ।

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